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حال دل پیش که گویم؟ که دل ریش ندارد |
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کیست در عشق تو کو غصه ز من بیش ندارد |
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دوش گفتی که: فلان از سر تیغم نبرد جان |
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بزن و مرد مخوانش که سری پیش ندارد |
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سر درویش فدا شد به وفا در قدم تو |
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پادشهزادهی ما را سر درویش ندارد |
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قد او تیر بلا، غمزهی او ناوک فتنه |
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یارب، این ترک چه تیریست که در کیش ندارد؟ |
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واعظ شهر مرا گفت که: دل با سخنم ده |
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چون دهد دل بتو بیچاره؟ که باخویش ندارد |
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همچو نارم بکفید از غم سیب ز نخش دل |
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دل مخوانش تو، که او عقل به اندیش ندارد |
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اوحدی را چو تو باشی، چه غم از جور رقیبان؟ |
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زانکه از تیغ نترسیده غم از نیش ندارد |
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