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هر هنرِ من که ز انگیزِ طبع |
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در نظرِ عقل شود جلوهگر |
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خصم بداندیش حسدپیشه را |
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ناوکی از رشک رسد بر جگر |
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طوطی شیرینعملِ نطقِ من |
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کام جهان را چو کند پُرشکر |
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چاشنیِ آن به مذاقِ حسود |
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چون رسد از زهر بُوَد تلختر |
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ز آبوهوای چمنِ طبعِ من |
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چون شود اشجارِ سخن پرثمر |
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بی جهتی ناخنِ دخلِ غنیم |
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میوهخراشی کند از هر شجر |
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طایر عنقا لقب درک من |
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بیضهٔ معنی چو کشد زیر پَر |
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خصم سیهرو کُنَدَش زاغ نام |
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روحقُدُس گر زند از بیضه سر |
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جنبش دریای خیالات من |
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افکنَد از تک چو به ساحل گُهَر |
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مدعی آن لؤلؤ شهوار را |
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گاه خزف خوانَد و گاهی حجر |
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ابرِ مَطیرِ شکرین کلک من |
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بر چمن دهر چو ریزد مطر |
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دوست خورَد نیشکر از فیض آن |
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زهر گیا دشمن حیوان سیر |
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محتشم اندر نظر عیبجو |
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عیب تو این است که داری هنر |
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