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محمد که بیدعوی تخت و تاج |
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ز شاهان به شمشیر بستد خراج |
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غلط گفتم آن شاه سدره سریر |
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که هم تاجور بود و هم تخت گیر |
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تنش محرم تخت افلاک بود |
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سرش صاحب تاج لولاک بود |
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فرشته نمودار ایزد شناس |
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که مارا بدو هست از ایزد سپاس |
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رساننده ما را به خرم بهشت |
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رهاننده از دوزخ تنگ زشت |
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سپیده دمی در شب کاینات |
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سیاهی نشینی چو آب حیات |
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گر او بر نکردی سر از طاق عرش |
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که برقع دریدی برین سبز فرش |
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ره انجام روحانی او دادمان |
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ره آورد عرش او فرستادمان |
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نیرزد به خاک سر کوی او |
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سر ما همه یک سر موی او |
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ز ما رنجه و راحت اندوز ما |
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چراغ شب و مشعل روز ما |
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درستی ده هر دلی کو شکست |
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شفاعت کن هر گناهی که هست |
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سرآمدترین همه سروران |
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گزیدهتر جملهی پیغمبران |
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گر آدم ز مینو درآمد به خاک |
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شد آن گنج خاکی به مینوی پاک |
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گر آمد برون ماه یوسف ز چاه |
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شد آن چشمه از چاه بر اوج ماه |
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اگر خضر بر آب حیوان گذشت |
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محمد ز سرچشمهی جان گذشت |
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وگر کرد ماهی ز یونس شکار |
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زمین بوس او کرد ماهی و مار |
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ز داود اگر دور درعی گذاشت |
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محمد ز دراعه صد درع داشت |
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سلیمان اگر تخت بر باد بست |
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محمد ز بازیچه باد رست |
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وگر طارم موسی از طور بود |
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سراپردهی احمد از نور بود |
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وگر مهد عیسی به گردون رسید |
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محمد خود از مهد بیرون پرید |
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زهی روغن هر چراغی که هست |
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به دریوزه شمع تو چرب دست |
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تو آن چشمهای کاب تو هست پاک |
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بدان آب شسته شده روی خاک |
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زمین خاک شد بوی طیبش توئی |
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جهان درد زد شد طبیبش توئی |
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طبیب بهی روی با آب و رنگ |
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ز حکم خدا نوشدارو به چنگ |
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توئی چشم روشن کن خاکیان |
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نوازندهی جان افلاکیان |
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طراز سخن سکهی نام توست |
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بقای ابد جرعهی جام توست |
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کسی کو ز جام تو یک جرعه خورد |
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همه ساله ایمن شد از داغ و درد |
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مبادا کزان شربت خوشگوار |
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نباشد چو من خاکیی جرعه خوار |
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