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ای فلک با کمال تو ناقص |
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وی جهان بینوال تو درویش |
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گم کند راه مصلحت تقدیر |
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گرنه تدبیر تو بود در پیش |
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همچو معنی که در بیان باشد |
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در جهانی و از جهانی بیش |
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دوش دور از تو ای مدبر عقل |
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نه به تدبیر عقل دوراندیش |
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جمع ضدین کرده در زنبور |
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لطفت از نوش انتقام از نیش |
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پیشت از گونه گونه بینفسی |
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که نگون باد نفس کافرکیش |
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کردهام آنکه یاد آن امروز |
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میکند جانم از خجالت ریش |
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هیچ دانی که روی عذری هست |
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تا بخواهم زنابکاری خویش |
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ای فلک پیش قدر تو ناقص |
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وی جهان پیش دست تو درویش |
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دولتت را زوال بیگانه |
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مدتت را خلود آمده خویش |
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در بزرگی ز روی نسبت و قدر |
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ذاتت از کل آفرینش بیش |
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حلم تو زود عفو دیر عتاب |
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حزم تو پیش بین دوراندیش |
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دوش در پیش خدمت تو که باد |
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آسمانش به خدمت آمده پیش |
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آن تجاوز نکردهام که توان |
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داشت جایز به هیچ مذهب و کیش |
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هیچ دانی چگونه خواهم خواست |
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عذر بیخردگی و مستی خویش |
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