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شمیم باغ بهشتست با نسیم عراق |
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که گشت زنده ز انفاس او دل مشتاق |
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برون ز خامه که او هم زبان بود ما را |
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که دستگیر تواند شد از سر اشفاق |
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ترا بقتل احبا مواخذت نکنند |
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مگر بخون شهیدان ضرب تیغ فراق |
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کجا رسد بکمندت که لاشهئی که مراست |
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اگر چه برق شود کی رسد بگرد فراق |
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درآن زمان که بود قالبم عظام رمیم |
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کنند نفحهی عشقت ز خاکم استنشاق |
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بتلخی ار چه بشد خسرو از جهان او را |
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حلاوت لب شیرین نمیرود ز مذاق |
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تو آفتاب بلندی ولی برون ز زوال |
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تو ماه مهر فروزی ولی بری ز محاق |
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دلم ز بهر چه با طره تو بندد عهد |
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که هندواست و بیک موی بشکند میثاق |
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کسی که سرور جادوگران بود پیوست |
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بود چو ابروی شوخت بچشم بندی طاق |
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ترا که این همه قول مخالفست رواست |
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که یاد مینکنی هیچ نوبت از عشاق |
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نوازشی بکن از اصفهان که گشت روان |
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از آب دیده ما زنده رود سوی عراق |
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کمال رتبت خواجو همین قدر کافیست |
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که هست بندهئی از بندگان بواسحق |
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