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ساقیا هستند خلقان از می ما دور دور |
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زان جمال و زان کمال و فر و سیما دور دور |
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گر چه پیر کهنهای در حکمت و ذوق و صفا |
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از شراب صاف ما هستی تو پیرا دور دور |
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چونک بینایان نمیبینند رنگ جام را |
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عقل خود داند که باشد جان اعمی دور دور |
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چون صریح و رمز قاضی مینداند جان او |
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دور باشد از دل او رمز و ایما دور دور |
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تا نبرد تیغ شمس الحق زنار تو را |
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جان تو باشد از آن لطف و چلیپا دور دور |
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تا ز خوبی بتان خالی نگردد جان تو |
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باشی از رخسار آن دلدار زیبا دور دور |
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گر چه اندر بزم شاهان تو بدی سرده ولیک |
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چون در این بزم اندرآیی باشی این جا دور دور |
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تو شنیدی قرب موسی طور سینا نور حق |
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در حضور خضر بود آن طور سینا دور دور |
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سقف مینا گر چه بس عالیست پیش چشم تو |
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لیک پیش رفعتش بد سقف مینا دور دور |
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ای گران جان یا سبک شو یا برو از بزم ما |
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یا مکن مانند خود از عیش ما را دور دور |
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مطرب عشاق بهر من زن این نادر نوا |
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زانک هست از گوش کر این بانگ سرنا دور دور |
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