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چه نزدیک است جان تو به جانم |
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که هر چیزی که اندیشی بدانم |
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از این نزدیکتر دارم نشانی |
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بیا نزدیک و بنگر در نشانم |
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به درویشی بیا اندر میانه |
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مکن شوخی مگو کاندر میانم |
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میان خانهات همچون ستونم |
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ز بامت سرفرو چون ناودانم |
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منم همراز تو در حشر و در نشر |
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نه چون یاران دنیا میزبانم |
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میان بزم تو گردان چو خمرم |
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گه رزم تو سابق چون سنانم |
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اگر چون برق مردن پیشه سازم |
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چو برق خوبی تو بیزبانم |
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همیشه سرخوشم فرقی نباشد |
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اگر من جان دهم یا جان ستانم |
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به تو گر جان دهم باشد تجارت |
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که بدهی به هر جانی صد جهانم |
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در این خانه هزاران مرده بیش اند |
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تو بنشسته که اینک خان و مانم |
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یکی کف خاک گوید زلف بودم |
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یکی کف خاک گوید استخوانم |
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شوی حیران و ناگه عشق آید |
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که پیشم آ که زنده جاودانم |
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بکش در بر بر سیمین ما را |
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که از خویشت همین دم وارهانم |
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خمش کن خسروا هم گو ز شیرین |
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ز شیرینی همیسوزد دهانم |
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