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چیست دانی عقل در نزد حکیم؟ |
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مقتبس، نوری ز مشکوة قدیم |
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از برای نفس تا سازد عیان |
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از معانی، آنچه میتابد بر آن |
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چون جمال عقل، عین ذات اوست |
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نیستش محتاج عینی کو نکوست |
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بلکه ذاتش هم لطیف و هم نکوست |
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دیگران را نیز نیکویی به اوست |
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پس اگر گویی، چرا نیکوست عقل |
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خواهمت گفتن: نکو زان روست عقل |
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جان و عقل آمد، بعینه، جان نور |
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که بود از عین ذات او ظهور |
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او بذاته، ظاهر آمد، نی به ذات |
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فهم کن، تا وارهی از مشکلات |
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نیر اعظم دو باشد: شمس و عقل |
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جسم و جان باشند عقل و شرع و نقل |
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نور عقلانی، فزون از شمس دان |
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زانکه این تابد به جسم و آن به جان |
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نور عقلانی کند تنویر دل |
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نور شمسانی کند تنویر گل |
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شمس بر ظاهر، همین تابان بود |
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لیک باطن، از خرد ریان بود |
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گر تو وصف عقل از من نشنوی |
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گوش کن ابیات چند از مثنوی |
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