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بخرام تو که سرو گلستانم آرزوست |
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بنمای رخ که یوسف کنعانم آرزوست |
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یوسف تویی و چاه بیاورده بر زنخ |
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من بیهشانه چاه زنخدانم آرزوست |
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از شوق سر چو گوی به راهت دهم ولی |
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از تاب گیسوان تو چوگانم آرزوست |
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دیدم چو ابروان تو دیگر نگویم این |
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بر خود که طاق درگه سلطانم آرزوست |
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چندی به دست دیو غمت بودهام اسیر |
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جانا نگین دست سلیمانم آرزوست |
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گشتم ملول بس ز بیابان دشت هجر |
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من قرب آستانهی سلطانم آرزوست |
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لیکن به شهر بی تو مرا حبس خانه است |
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زآن رو بود که دشت و بیابانم آرزوست |
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زین مردمان مست تنُکدل دلم گرفت |
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آن غرهشیر و ضیغم غژمانم آرزوست |
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گشتم ز هجر روی تو دیوانه، زین سپس |
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زنجیر و بند و کنده و زندانم آرزوست |
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گرد ملال بر رخ زردم نشست از آنک |
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از خواهشی ملولم و افغانم آرزوست |
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زین پس ترحمی بنما جان من که من |
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زین مشت خر ملولم و انسانم آرزوست |
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از تلخی فراق بمردم، به قول شمس |
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«بگشای لب که قند فراوانم آرزوست» |
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مُردَم ز هجر روی تو ای یار خوشنفس |
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بوسی بده که چشمهی حیوانم آرزوست |
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زین خاکدان و مردم بیدین دلم پر است |
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من بقعهی رضای خراسانم آرزوست |
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شیدا ملولمی ز غزلگویی عبث |
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مداحی امام جهانبانم آرزوست |
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