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صنوبری نبود چون تو سرو بالا را |
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عقیق نی چو دو لعل لب شکرخا را |
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به دهر و گلشن وی یاسمین و سنبل تر |
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ندیدهام چو دو گیسوی عنبرآسا را |
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به خاک غم بنشینند لیلی و عذرا |
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زنیم غمزهی آن نرگسان شهلا را |
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ز غمزهای که کند یک جهان روند از هُش |
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زنیم نفخه کند خلق صد مسیحا را |
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اگر ز غمزه گشاید دو لب به یقین |
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شود خموش مر آن طوطی شکرخا را |
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اگر ز گوشهی ابرو نقاب برگیرد |
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برد دوصد دل دلبردهی زلیخا را |
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ز ناز گر بخرامد هزار سرو سهی |
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خجل شوند از آن قامت دلآرا را |
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دلم ز هجر بسی عقده بسته ای مه تام |
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ز خال هندوی خود حل کن این معما را |
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مقیم کوی تو شیدا شد ای شها آخر |
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زکات هم بودش حسن و روی زیبا را |
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