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ای زلف تو دام و دانه خالت |
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هر صید که میکنی حلالت |
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خورشید دراوفتاده پیوست |
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در حلقهی دام شب مثالت |
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همچون نقطی سیه پدیدار |
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بر چهرهی آفتاب خالت |
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دل فتنهی طرهی سیاهت |
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جان تشنهی چشمهی زلالت |
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از عالم حسن دایه لطف |
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آورده به صد هزار سالت |
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رخ زرد و کبود جامه خورشید |
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سرگشتهی ذرهی وصالت |
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تو خفته و اختران همه شب |
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مبهوت بمانده در جمالت |
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تو ماه تمامی و عجب آنک |
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انگشت نمای شد هلالت |
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مرغی عجبی که مینگنجد |
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در صحن سپهر پر و بالت |
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چون در تو توان رسید چون کس |
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هرگز نرسید در خیالت |
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پی گم کردی چنانکه هرگز |
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کس پی نبرد به هیچ حالت |
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خواهد که بسی بگوید از تو |
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عطار ولی بود ملالت |
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