عطار (غزلیات)/دریاب که رخت برنهادم
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دریاب که رخت برنهادم |
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روی از عالم بدر نهادم |
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هم غصه به زیر پای بردم |
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هم پای به آن زبر نهادم |
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نایافته وصل جان بدادم |
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این نیز بر آن دگر نهادم |
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دریای غم تو موج میزد |
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من روی به موج در نهادم |
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ناگاه به درد غرق گشتم |
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یک گام چو بیشتر نهادم |
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گفتی سفری بکن که در راه |
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از بهر تو صد خطر نهادم |
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از خاک در تو برگرفتم |
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آن روی که در سفر نهادم |
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فراشی خاک درگه تو |
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با جانب چشم تر نهادم |
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خون خوردن جاودانه بی تو |
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قسم دل بی خبر نهادم |
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از خون سرشک من گلی شد |
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هر خشت که زیر سر نهادم |
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جز نام تو بار بر نیاورد |
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هر داغ که بر جگر نهادم |
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در آتش دل بتافتم گرم |
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از هر داغی که بر نهادم |
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بس مهر که از خیال رویت |
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بر مردمک بصر نهادم |
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آن چندان مهر تا قیامت |
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از بهر یکی نظر نهادم |
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بی او نظری فرید نگشاد |
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کین قاعده معتبر نهادم |
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