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اعجمی ترکی سحر آگاه شد |
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وز خمار خمر مطربخواه شد |
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مطرب جان مونس مستان بود |
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نقل و قوت و قوت مست آن بود |
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مطرب ایشان را سوی مستی کشید |
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باز مستی از دم مطرب چشید |
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آن شراب حق بدان مطرب برد |
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وین شراب تن ازین مطرب چرد |
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هر دو گر یک نام دارد در سخن |
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لیک شتان این حسن تا آن حسن |
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اشتباهی هست لفظی در بیان |
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لیک خود کو آسمان تا ریسمان |
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اشتراک لفظ دایم رهزنست |
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اشتراک گبر و ممن در تنست |
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جسمها چون کوزههای بستهسر |
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تا که در هر کوزه چه بود آن نگر |
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کوزهی آن تن پر از آب حیات |
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کوزهی این تن پر از زهر ممات |
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گر به مظروفش نظر داری شهی |
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ور به ظرفش بنگری تو گمرهی |
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لفظ را مانندهی این جسم دان |
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معنیش را در درون مانند جان |
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دیدهی تن دایما تنبین بود |
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دیدهی جان جان پر فن بین بود |
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پس ز نقش لفظهای مثنوی |
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صورتی ضالست و هادی معنوی |
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در نبی فرمود کین قرآن ز دل |
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هادی بعضی و بعضی را مضل |
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الله الله چونک عارف گفت می |
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پیش عارف کی بود معدوم شی |
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فهم تو چون بادهی شیطان بود |
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کی ترا وهم می رحمان بود |
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این دو انبازند مطرب با شراب |
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این بدان و آن بدین آرد شتاب |
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پر خماران از دم مطرب چرند |
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مطربانشان سوی میخانه برند |
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آن سر میدان و این پایان اوست |
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دل شده چون گوی در چوگان اوست |
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در سر آنچ هست گوش آنجا رود |
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در سر ار صفراست آن سودا شود |
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بعد از آن این دو به بیهوشی روند |
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والد و مولود آنجا یک شوند |
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چونک کردند آشتی شادی و درد |
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مطربان را ترک ما بیدار کرد |
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مطرب آغازید بیتی خوابناک |
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که انلنی الکاس یا من لا اراک |
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انت وجهی لا عجب ان لا اراه |
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غایة القرب حجاب الاشتباه |
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انت عقلی لا عجب ان لم ارک |
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من وفور الالتباس المشتبک |
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جت اقرب انت من حبل الورید |
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کم اقل یا یا نداء للبعید |
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بل اغالطهم انادی فی القفار |
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کی اکتم من معی ممن اغار |
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