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خدایگانا سال نوت همایون باد |
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همیشه روز تو چون روز عید میمون باد |
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به گرد طالع سعدت که کعبهی فلکست |
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هزار دور طواف سعود گردون باد |
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چنانکه رای تو بر امن و عدل مفتونست |
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زمانه بر تو و بر دولت تو مفتون باد |
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جهان عمارت و تسکین به رای و عدل تو یافت |
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همیشه هم به تو معمور باد و مسکون باد |
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چو بارگاه ترا پر شود ورق ز حروف |
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در آن ورق الف قد خسروان نون باد |
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نهال بختی کز باغ دولتت نبرند |
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چو شاخ خشک ز امکان نشو بیرون باد |
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اساس ملکی کز بهر خدمتت ننهند |
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ز نعل اسب حوادث خراب و هامون باد |
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اگر نه لاف سخا از دلت زند دریا |
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به جای در و گهر در دل صدف خون باد |
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ور از مراد تویی باز پس نهد گردون |
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به اضطرار و گردون بارکش دون باد |
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ز نام تو دهن سکه گر ببندد چرخ |
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وجوهساز معادن قرین قارون باد |
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ز ذکر تو ورق خطبه گر بشوید دهر |
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سلام جمعه به تکبیر صور مقرون باد |
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به روز معرکه س المزاج نصرت را |
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ز خون خصم تو مطبوخ باد و معجون باد |
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قدر چو دفتر توجیه رزقها شکند |
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محرران فلک را کف تو قانون باد |
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چو ابر چتر تو سیل ظفر برانگیزد |
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ازو کمینه تکابی فرات و جیحون باد |
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بر آنکه نیست ز فوج تو موج حادثه را |
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زمان زمان ز کمین قضا شبیخون باد |
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اگر قضا رخ گردون ز فتنه زرد کند |
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از آنچه عجز ترا روی بخت گلگون باد |
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وگر قدر شب فکرت به روز دیر برد |
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از آن چه باک ترا روز و شب همایون باد |
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همیشه تا به جهان در کمی و افزونیست |
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عدوی ملک تو کم باد و ملکت افزون باد |
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ز کردگار به هر طاعتی که قصد کنی |
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هزار اجرت و آن اجر غیر ممنون باد |
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ز روزگار به هر نعمتی که روی نهی |
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هزار خدمت و هر خدمتی دگرگون باد |
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خدایگانا از غایت غلو و علو |
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همی ندانم گفتن که دولتت چون باد |
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دعای بنده مگر مستجاب خواهد بود |
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که در دهانش سخن همچو در مکنون باد |
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بدان دلیل که هردم سپهر میگوید |
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همین زمان و همین ساعت و هماکنون باد |
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