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شرف گوهر اولاد نظام |
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ملک را باز شرف داد و نظام |
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صاحب مملکت و خواجهی عصر |
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نصار دین و نصیر اسلام |
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بوالمظفر که به عون ظفرش |
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عدل شد ظلم و ضیا گشت ظلام |
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آن پس از مبدع و پیش از ابداع |
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آن به از جنبش و پیش از آرام |
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سیر امرش ببرد کوی صبا |
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ابر جودش ببرد آب غمام |
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نهد ار قصد کند همت او |
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بر محیط فلک اعظم گام |
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عدلش ار چیره شود بر عالم |
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دیدهی باشه شود جای حمام |
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امنش ار خیمه زند بر صحرا |
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گرگ را صلح دهد با اغنام |
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ای قضا داده به حکم تو رضا |
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وی قدر داده به دست تو زمام |
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کند ار جهد کند دولت او |
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بر سر توسن افلاک لگام |
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از پی کثرت خدام تو شد |
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حامل نطفه طباع ارحام |
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ای ترا گردش افلاک مطیع |
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وی ترا خواجهی اجرام غلام |
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بنده را بنده خداوندانند |
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تا که در حضرت تست از خدام |
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به قبولی که ز اقبال تو دید |
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مقصد خاص شد و قبلهی عام |
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تا قیامت شرفی یافت ز تو |
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که به جایش نتوان کرد قیام |
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گرچه از خدمت دیرینهی او |
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حاصلی نیست ترا جز ابرام |
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گر به درگاه تو آبی بودش |
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نام او پخته شود حکمت خام |
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علم شعر زند بر شعری |
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در مدیح تو زند نظم نظام |
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چون ریاضت ز تو یابد نشگفت |
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توسن طبعش اگر گردد رام |
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هم در ایام تو جایی برسد |
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اگر انصاف بیابد ز ایام |
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گر بجز پیش تو تا روز اجل |
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برکشد تیغ فصاحت ز نیام |
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کشتهی تیغ اجل باد چنان |
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که نشورش نبود روز قیام |
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تابد از روی حسام تو ظفر |
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راست همچون گهر از روس حسام |
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وتد قاف ترا میخ طناب |
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اوج خورشید ترا ساق خیام |
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پست با قدر تو قدر کیوان |
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کند با تیغ تو تیغ بهرام |
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پیش حکم تو کشد کلک قضا |
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خط طغیان و خطا بر احکام |
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شایدت روز سواری و شکار |
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آسمان مرکب و مه طرف ستام |
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روز عیش تو نهد دست قدر |
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بر کف جان و خرد جام مدام |
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زیبدت روز تماشا و شراب |
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زهره خنیاگر و ماه نو جام |
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گر به انگشت ذکا بنمایی |
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نقطه چون جسم پذیرد اقسام |
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ور در آیینهی خاطر نگری |
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دهد از راز سپهرت اعلام |
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مرکز عالمی از غایت حلم |
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هفت اقلیم ترا هفت اندام |
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خواهد از رای منیرش هر روز |
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جرم خورشید فلک تابش وام |
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کاهد از کلک و بنانش هردم |
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دفتر و کلک عطارد را نام |
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واله حکم تو دور افلاک |
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تابع رای تو سیر اجرام |
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اول فکرتی و آخر فعل |
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که جهان شد به وجود تو تمام |
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وز پی شرح رسوم سیرت |
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قابل نظم و عروضست کلام |
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روز کین نفس نفیس تو کند |
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چون در اوهام عمل در اجسام |
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تا بود از پی هر شامی صبح |
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باد بدخواه ترا صبح چو شام |
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گشته بر خصم تو چون کام نهنگ |
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همه آفاق وزو یافته کام |
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هر چه تقدیر کنی بیمهلت |
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وانچه آغاز کنی بیانجام |
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مسند صدر مقام تو مقیم |
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شربت عیش مدام تو مدام |
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