| | | | | | |
|
مشو، مشو، ز من خستهدل جدا ای دوست |
|
مکن، مکن، به کفاند هم رها ای دوست |
|
|
برس، که بیتو مرا جان به لب رسید، برس |
|
بیا که بر تو فشانم روان، بیا ای دوست |
|
|
بیا، که بیتو مرا برگ زندگانی نیست |
|
بیا، که بیتو ندارم سر بقا ای دوست |
|
|
اگر کسی به جهان در، کسی دگر دارد |
|
من غریب ندارم مگر تو را ای دوست |
|
|
چه کردهام که مرا مبتلای غم کردی؟ |
|
چه اوفتاد که گشتی ز من جدا ای دوست؟ |
|
|
کدام دشمن بدگو میان ما افتاد؟ |
|
که اوفتاد جدایی میان ما ای دوست |
|
|
بگفت دشمن بدگو ز دوستان مگسل |
|
برغم دشمن شاد از درم درآ ای دوست |
|
|
از آن نفس که جدا گشتی از من بیدل |
|
فتادهام به کف محنت و بلا ای دوست |
|
|
ز دار ضرب توام سکه بر وجود زده |
|
مرا بر آتش محنت میازما ای دوست |
|
|
چو از زیان منت هیچگونه سودی نیست |
|
مخواه بیش زیان من گدا ای دوست |
|
|
ز لطف گرد دل بیغمان بسی گشتی |
|
دمی به گرد دل پر غمان برآ ای دوست |
|
|
ز شادی همه عالم شدست بیگانه |
|
دلم که با غم تو گشت آشنا ای دوست |
|
|
ز روی لطف و کرم شاد کن بروی خودم |
|
که کرد بار غمت پشت من دوتا ای دوست |
|
|
ز همرهی عراقی ز راه واماندم |
|
ز لطف بر در خویشم رهینما ای دوست |
|