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تا کی کنی گله که نه خوب است کار من |
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وز تیر ماه تیرهتر آمد بهار من؟ |
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چون بنگری که شست بدادی به طمع شش |
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نوحه کنی که وای گل و وای خار من |
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چون من ز بهر مال دهم روزگار خویش |
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آید به مال باز به من روزگار من؟ |
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هرگز نیامد و بنیاید گذشته باز |
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بر قول من گوا بس پیرار و پار من |
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در من نگر که منت بسم روشن آینه |
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یکسر نگار خویش ببین و در نگار من |
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غره مشو به عارض عنبر نبات خویش |
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واندر نگر به عارض کافور بار من |
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مویم چنین سپید ز گرد سپاه شد |
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کامد سپاه دهر سوی کارزار من |
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جانم به جنگ دهر خرد چون حصار کرد |
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یابد هگرز دهر ظفر بر حصار من؟ |
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اندر حصار من نرسد دست روزگار |
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چشم زمانه خیره شد اندر غبار من |
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کردم کناره از طرب و بینصیب ماند |
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این صد هزار ساله عروس از کنار من |
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آن غمگسار دینه مرا غمفزای گشت |
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وان غمفزای هست کنون غمگسار من |
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آزاد شد ز بار همه خلق گردنم |
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امروز چون ز خلق بیفتاد بار من |
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دانا مرا بجست و من او را بخواستم |
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من خوستار او شدم او خواستار من |
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راز آشکاره کرد و دل من شکار کرد |
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تا آشکاره اهل خرد شد شکار من |
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سوی قوی نهان من از چشم دل نگر |
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غره مشو به پشت ضعیف و نزار من |
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گر زی فلک برآرد سر نار خاطرم |
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خورشید نور خویش بسوزد به نار من |
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تیره است زهره پیش ضمیر منیر من |
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خوار است تیر زی قلم تیرهخوار من |
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از من نثار شکر و جواب مفصل است |
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آن را که او سال طرازد نثار من |
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چون من گره زنم به سخن بر کجا نهد |
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سقراط دست بر گره استوار من؟ |
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وان بندها که بست فلاطون پیش بین |
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خوهل است و سست پیش کهین پیشکار من |
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این پایگه مرا زین بهین خلایق است |
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این پایگه نداشت کس اندر تبار من |
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بر چرخ ماه رفتم از این چاه ژرف زشت |
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هرگز کسی ندید عجبتر ز کار من |
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خرما بنی بدیدم شاخش در آسمان |
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بر وی نثار کرده خرد کردگار من |
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با بیم و ناامید به سختی زی او شدم |
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زو بختیار گشتم و شد بخت یار من |
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گفتم به راه جهل همی توشه بایدم |
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گفتا تو را بس است یکی شاخسار من |
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جنبید نرم نرم و ببارید بر دلم |
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باری کزو رمیده نشد کاروبار من |
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بیبر چنار بودم خرما بنی شدم |
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خرماست بار بنده کنون بر چنار من |
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تا بار آن درخت مبارک بخوردهام |
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گشته است با قرار دل بیقرار من |
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گر تخم و بار من نبریدی، به رغم دیو |
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خرمابنان شدهستی یکسر دیار من |
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فرزند دیو را رطبم زهرمار گشت |
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من زهر مار او شدم او زهر مار من |
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وین طرفهتر که روز و شبان می طلب کنم |
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من زندگی ایشان و ایشان دمار من |
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ای مردمی به صورت جسم و به دل ستور |
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بر گردن تو یوغ من است و سپار من |
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من مرد ذوالفقارم و تو مرد درهای |
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دره کجا بس آید با ذوالفقار من؟ |
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زی ذوالفقارم آمد سیصد هزار تو |
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زی دره نامدهاست یکی از هزار من |
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عفریت دوستدار تو و دستیار توست |
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جبریل دستیار من و دوستدار من |
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تو اسپ بیفسار و فسار است عهد تو |
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قیمت فزایدت چو ببینی فسار من |
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بیزیب و زینت است هران گوش و گردنی |
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کو نیست زیر طوق من و گوشوار من |
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عهد و بیان بس است تو را طوق و گوشوار |
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این هر دو یافتی چو شدی گوشدار من |
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آبی است نزد من که خمار تو بشکند |
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پیش آرمت چو گوئی «بشکن خمار من» |
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شعرم بخوان و فخر مدان مر مرا به شعر |
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دین دان نه شعر فخر من و هم شعار من |
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ای آنکه کردگار ز بهر تو جفت کرد |
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با جان هوشیارم شخص نزار من |
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چون من دوازده است تو را اسپ و بارگیر |
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لیکن زخلق نیست جز از تو سوار من |
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